
Gratitude
Rekha Tukra
मेरी कहानी तेरी ज़ुबानी,
हालाँकि, सारे ज़ख़्म है ताज़ा पर पीड पुरानी: आख़िरकार, मेरी अनकही कहानी सारे जहाँ ने जानी ।
निरर्थक, नही गयी हमारे खून की क़ुर्बानी: बेमतलब नहीं रही हम लोगों की ज़िंदगानी ॥
निर्जर, रहे वह कश्मीर की शारिका वासनी: जगजननी, हमारी इष्ट देवी कुल भवानी ।
निरंजन, पर्वत पे विराजमान आदि अन्नता बर्फ़ानी: निर्जन धरती पे स्वर्ग की स्मृतियाँ पुरानी ॥
कोइ आया जिसने की हम पर मेहरबानी: शायद होगा कोई फ़रिश्ता आसमानी।
निस्वार्थ और करुणा से हमारी वेदना सुनानी: है वो एक उच्च कोटि का निर्माता और ज्ञानी॥
हमरी अब तक थी पहचान अनजानी, आपने लोटा दी हमारे अस्तित्व की निशानी।
कभी होती है मुझे भी हेरनी, पर ज़रूर होगा हमसे आपका जेसे कोई रिशता रूहानी ॥
मेरी मेली चादर कर दी इंद्रधनुष के रँगो से दानी, जेसे गूँगे बद्र को दे दी हो शब्द और वाणी ।
इतिहास का नया अध्याय सुनहरे अक्षरों में लिखवानी, बाव विभोर ,विलोहित हो गए हम सब प्राणी॥
गौरवशाली ऐसे जेसे निर्मल शीतल पानी, विचारधारा बहती हुई दरियाँ की रवानी ।
गुम हो गए जहाँ वो थी डगर अनजानी, आशा का दीप और सिखा दी आपने राह पे जोत जलानी ॥
सागर की गीली रेतो पर लिखे थे मेने अपने ग़म और पशेमानी: गम क्या चीज़ है लहरों को आती हसतियाँ मिटानी: और माँजी को भँवर से नाव बचानी ॥
अब ना चले गी ज़ोर जबर की मनमानी: डट के करेंगे अपने बाग और ज़मीन की निगेबानी ।
मिट जाएँगे भय, अंधकार और परेशानी: जीत होगी सत्य की फिर पड़ेगी नफ़रत को जंग हारनी॥
हमारा दोष, क़िस्मत की मार या उसकी करनी: पर हमने भी मुसीबतो से हार कब है मानी।
इरादे हो गए अब मज़बूत चट्टानी: फिर से तूफानो से टकराना की हमने है ठानी॥
हवा ने रूख बदला फिर ना करे कोई आनाकानी, ऐसे ही तो अब फ़िज़ाओं में ईत्र, शहेद है मिलानी
ज़हा कोई न हो मज़हबी बस सिर्फ इंसानी, उसी अपने शहर वापस जाकर एक नयी दुनिया है बसानी
शांती अमन के साथ मिलजुल के अब उम्र है बितानी: भाईचारे की परम्परा हम सब को निभानी
अब ना रहे दिलों में कोई बदगुमानी: आओ आज यह क़सम है खानी: राह भटकों को दिशा दिखानी